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वह कितना मेहरबान था कि हज़ारों
वह कितना मेहरबान था कि हज़ारों
वह कितना मेहरबान था कि हज़ारों गम दे गया
हम कितने खुदगर्ज़ निकले कुछ ना दे सके उसे प्यार के सिवा
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लिखा था राशि में आज खजाना
दिल तो यु ही किसी का
अगर किसी दिन रोना आये तो
उसने महबूब ही तो बदला है
यही बहुत है कि तूने पलट
कागज़ पे लिखी गज़ल बकरी चबा
कुछ इसलिए भी पंसद आते है
सिगारेट जलाई थी उसकी याद भुलाने
हुए बदनाम मगर फिर भी न
मौहब्बत की मिसाल मेंबस इतना ही
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