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तप रहीं हैं इमारतें अब कच्चे
तप रहीं हैं इमारतें अब कच्चे
तप रहीं हैं इमारतें, अब कच्चे गाँव कहाँ
चिलचिलाती धूप में अब पेडों की छाँव कहाँ
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हसरत थी की कभी वो भी
क्यूँ दुनिया वाले मोहब्बत को खुदा
वर्षों बाद जबआइना देखा तो आइना
हिलते लबो को तो दुनिया जान
तुझ से दूर रहकर मोहब्बत बढती
ऐ इश्क़ दिल की बात कहूँ
सिकंदर तो हम अपनी मर्जी से
आज भी लोग हमारी इतनी इज्जत
अगर अहसास बयान हो जाते लफ़्ज़ों
मेरी बेतहाशा मोहब्बत को उस पगली
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