अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं​; ​रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं​;​ ​​ ​​पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता हैं​;​ ​अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं​।

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