उन गलियों से जब गुज़रे तो मंज़र अजीब था; दर्द था मगर वो दिल के करीब था; जिसे हम ढूँढ़ते थे अपनी हाथों की लकीरों में; वो किसी दूसरे की किस्मत किसी और का नसीब था।
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उन गलियों से जब गुज़रे तो मंज़र अजीब था; दर्द था मगर वो दिल के करीब था; जिसे हम ढूँढ़ते थे अपनी हाथों की लकीरों में; वो किसी दूसरे की किस्मत किसी और का नसीब था।
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