किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे; गुज़र गयी जरस-ए-गुल उदास करके मुझे; मैं सो रहा था किसी याद के शबिस्ताँ में; जगा के छोड़ गए काफिले सहर के मुझे। शब्दार्थ: जरस-ए-गुल = फूलों की लड़ी शबिस्ताँ = बिस्तर

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