खुलेगी इस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता; किया जाता है पानी में सफ़र आहिस्ता आहिस्ता; कोई ज़ंजीर फिर वापस वहीं पर ले के आती है; कठिन हो राह तो छूटता है घर आहिस्ता आहिस्ता।
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खुलेगी इस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता; किया जाता है पानी में सफ़र आहिस्ता आहिस्ता; कोई ज़ंजीर फिर वापस वहीं पर ले के आती है; कठिन हो राह तो छूटता है घर आहिस्ता आहिस्ता।
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