ताबीर जो मिल जाएं तो एक ख्वाब बहुत था; जो शख्स गंवा बैठी हूं नायाब बहुत था; मैं भला कैसे बचा लेती कश्ती-ए-दिल को सागर से; दरिया-ए- मोहब्बत में सैलाब बहुत था।
Like (0) Dislike (0)
ताबीर जो मिल जाएं तो एक ख्वाब बहुत था; जो शख्स गंवा बैठी हूं नायाब बहुत था; मैं भला कैसे बचा लेती कश्ती-ए-दिल को सागर से; दरिया-ए- मोहब्बत में सैलाब बहुत था।
Your Comment