दर्द आँखों में झलक जाता है पर होंठों तक नहीं आता; ये मज़बूरी है मेरे इश्क़ की जो मिलता है खो जाता है; उसे भूलने का जज़्बा तो हर रोज़ दिल में आता है; पर कैसे भुला दे दिल हर जर्रे में उसको पाता है।
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दर्द आँखों में झलक जाता है पर होंठों तक नहीं आता; ये मज़बूरी है मेरे इश्क़ की जो मिलता है खो जाता है; उसे भूलने का जज़्बा तो हर रोज़ दिल में आता है; पर कैसे भुला दे दिल हर जर्रे में उसको पाता है।
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