बुझते हुए अरमानों का इतना ही फ़साना है; इश्क़ में तेरे हर पल हम को रहना है; चाहे सितमगर कितने भी ज़ख़्म दे हमें; इश्क़ में हर ज़ख्म हमें हँसते हुए सहना है।
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बुझते हुए अरमानों का इतना ही फ़साना है; इश्क़ में तेरे हर पल हम को रहना है; चाहे सितमगर कितने भी ज़ख़्म दे हमें; इश्क़ में हर ज़ख्म हमें हँसते हुए सहना है।
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