वो नाराज़ हैं हमसे कि हम कुछ लिखते नहीं; कहाँ से लाएं लफ्ज़ जब हमको मिलते नहीं; दर्द की ज़ुबान होती तो बता देते शायद; वो ज़ख्म कैसे दिखाए जो दिखते नहीं।
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वो नाराज़ हैं हमसे कि हम कुछ लिखते नहीं; कहाँ से लाएं लफ्ज़ जब हमको मिलते नहीं; दर्द की ज़ुबान होती तो बता देते शायद; वो ज़ख्म कैसे दिखाए जो दिखते नहीं।
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