मत पूछ कैसे गुज़र रही है ज़िन्दगी; उस दौर से गुज़र रहा हूँ जो गुज़रता ही नहीं।
मत पूछ कैसे गुज़र रही है ज़िन्दगी; उस दौर से गुज़र रहा हूँ जो गुज़रता ही नहीं।
रोने से अगर वो मिल जाये तो,
भगवान की कसम ईस धरती पे सावन की बरसात लगा दूँ..
अभी शीशा हूँ सबकी आँखों में चुभता हूं
जब आईना बनूँगा सारा जहाँ देखेगा
तुम सो जाओ अपनी दुनिया में आराम से,
मेरा अभी इस रात से कुछ हिसाब बाकी है.!!
लाजिमी नहीं की आपको आँखों से ही देखुं
आपको सोचना आपके दीदार से कम नहीं
अमीर होता तो बाज़ार से खरीद लाता नकली
गरीब हूँ इसलीये दील असली दे रहा हु
सब कुछ बदला बदला था जब बरसो बाद मिले; हाथ भी न थाम सके वो इतने पराये से लगे।
खो गई वो प्यासी नज़र मेरी तड़प कर ढूंढा करती नज़र तेरी
जाने कहाँ जाने कहाँ
ना छोड़ना मेरा साथ ज़िन्दगी में कभी
शायद मैं ज़िंदा हूँ तेरे साथ की वजह से
सुना है आग लग गयी है बेवफाओ की बस्ती में
या खुदा मेरी मेहबूब की खैर रखना
थोडी सजा उन्हेँ भी दे देते जज साहब
जिनकी वजह से गरीब लोग सडको पर सोते है
मेरी मोहब्बत भी काले धन की तरह है
छुपा भी नहीं सकते और दिखा भी नहीं सकते
मेरी मोहब्बत भी काले धन की तरह है
छुपा भी नहीं सकते और दिखा भी नहीं सकते
एक बार फिर से निकलेगे तलाश ऐ इशक मे दुआ
करो यारो इस बार कोई बेवफा ना मिले
काश वो दिन अब और जल्दी आये
जब मन की आखो से अच्छी तरह से तुम्हे निहार सकूं