अज़ाब ये भी किसी... अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया; कि एक उम्र चले और घर नहीं आया; इस एक ख़्वाब की हसरत में जल बुझीं आँखें; वो एक ख़्वाब कि अब तक नज़र नहीं आया; करें तो किस से करें ना-रसाइयों का गिला; सफ़र तमाम हुआ हम-सफ़र नहीं आया; दिलों की बात बदन की ज़बाँ से कह देते; ये चाहते थे मगर दिल इधर नहीं आया; अजीब ही था मेरे दौर-ए-गुमरही का रफ़ीक़; बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया; हरीम-ए-लफ़्ज़-ओ-मआनी से निस्बतें भी रहीं; मगर सलीक़ा-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं आया।

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