अपने जज्बातों को अपने जज्बातों को नाहक ही सजा देता हूँ; जब भी होती है शाम चिरागो को बुझा देता हूँ; कह नहीं पाता हाले दिल तुम से कभी मैं; वर्ना जर्रे-जर्रे को हर किस्सा सुना देता हूँ; जब राहत मिलती नहीं किसी भी तरह से मुझे; लिखता हूँ हथेली पे तेरा नाम और मिटा देता हूँ।

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