अभी आँखें खुली हैं... अभी आँखें खुली हैं और क्या क्या देखने को; मुझे पागल किया उस ने तमाशा देखने को; वो सूरत देख ली हम ने तो फिर कुछ भी न देखा; अभी वर्ना पड़ी थी एक दुनिया देखने को; तमन्ना की किसे परवाह कि सोने जागने मे; मुयस्सर हैं बहुत ख़्वाब-ए-तमन्ना देखने को; ब-ज़ाहिर मुतमइन मैं भी रहा इस अंजुमन में; सभी मौजूद थे और वो भी ख़ुश था देखने को; अब उस को देख कर दिल हो गया है और बोझल; तरसता था यही देखो तो कितना देखने को; छुपाया हाथ से चेहरा भी उस ना-मेहरबाँ ने; हम आए थे ज़फ़र जिस का सरापा देखने को।

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