आँखों में धूप दिल में हरारत... आँखों में धूप दिल में हरारत लहू की थी; आतिश जवान था तो क़यामत लहू की थी; ज़ख़्मी हुआ बदन तो वतन याद आ गया; अपनी गिरह में एक रिवायत लहू की थी; ख़ंजर चला के मुझ पे बहुत ग़म-ज़दा हुआ; भाई के हर सुलूक में शिद्दत लहू की थी; कोह-ए-गिराँ के सामने शीशे की क्या बिसात; अहद-ए-जुनूँ में सारी शरारत लहू की थी; ख़ालिद हर एक ग़म में बराबर का शरीक था; सारे जहाँ के बीच रफ़ाकत लहू की थी।

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