आफत की शोख़ियां हैं... आफत की शोख़ियां हैं तुम्हारी निगाह में; मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में; वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं; मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी कि निगाह में; आती है बात बात मुझे याद बार बार; कहता हूं दौड़ दौड़ के कासिद से राह में; इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर; जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में; मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे; ऐ दाग़ तुम तो बैठ गये एक आह में।

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