आया हूँ संग ओ ख़िश्त के... आया हूँ संग ओ ख़िश्त के अम्बार देख कर; ख़ौफ़ आ रहा है साया-ए-दीवार देख कर; आँखें खुली रही हैं मेरी इंतज़ार में; आए न ख़्वाब दीद-ए-बे-दार देख कर; ग़म की दुकान खोल के बैठा हुआ था मैं; आँसू निकल पड़े हैं ख़रीददार देख कर; क्या इल्म था फिसलने लगेंगे मेरे क़दम; मैं तो चला था राह को हम-वार देख कर; हर कोई पार-साई की उम्दा मिसाल था; दिल ख़ुश हुआ है एक गुनह-गार देख कर।

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