इतना तो ज़िंदगी में... इतना तो ज़िंदगी में किसी की ख़लल पड़े; हँसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े; जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़म; यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े; एक तुम के तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है; एक हम के चल पड़े तो बहरहाल चल पड़े; मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह; जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े; साक़ी सभी को है ग़म-ए-तश्नालबी मगर; मय है उसी के नाम पे जिस के उबल पड़े।

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