इसी में ख़ुश हूँ... इसी में ख़ुश हूँ मेरा दुख कोई तो सहता है; चली चलूँ कि जहाँ तक ये साथ रहता है; ज़मीन-ए-दिल यूँ ही शादाब तो नहीं ऐ दोस्त; क़रीब में कोई दरिया ज़रूर बहता है; न जाने कौन सा फ़िक़्रा कहाँ रक़्म हो जाये; दिलों का हाल भी अब कौन किस से कहता है; मेरे बदन को नमी खा गई अश्कों की; भरी बहार में जैसे मकान ढहता है।

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