उलझाव का मज़ा भी... उलझाव का मज़ा भी तेरी बात ही में था; तेरा जवाब तेरे सवालात ही में था; साया किसी यक़ीं का भी जिस पर न पड़ सका; वो घर भी शहर-ए-दिल के मुज़ाफ़ात ही में था; इलज़ाम क्या है ये भी न जाना तमाम उम्र; मुल्ज़िम तमाम उम्र हवालात ही में था; अब तो फ़क़त बदन की मुरव्वत है दरमियाँ; था रब्त जान-ओ-दिल का तो शुरूआत ही में था; मुझ को तो क़त्ल करके मनाता रहा है जश्न; वो ज़िलिहाज़ शख़्स मेरी ज़ात ही में था।

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