कहाँ ले जाऊँ दिल... कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है; यहाँ परियों का मजमा है वहाँ हूरों की महफ़िल है; इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं; के हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है; ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा; मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है मेरा दिल; है जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुंजलाकर; अरे तू कौन है हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है; हज़ारों दिल मसल कर पांओ से झुंजला के फ़रमाया; लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है।

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