कौन कहता है कि... कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगा; मैं तो दरिया हूं समंदर में उतर जाऊँगा; तेरा दर छोड़ के मैं और किधर जाऊँगा; घर में घिर जाऊँगा सहरा में बिखर जाऊँगा; तेरे पहलू से जो उठूँगा तो मुश्किल ये है; सिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा जिधर जाऊँगा; अब तेरे शहर में आऊँगा मुसाफ़िर की तरह; साया-ए-अब्र की मानिंद गुज़र जाऊँगा; तेरा पैमान-ए-वफ़ा राह की दीवार बना; वरना सोचा था कि जब चाहूँगा मर जाऊँगा; ज़िन्दगी शमा की मानिंद जलाता हूं नदीम ; बुझ तो जाऊँगा मगर सुबह तो कर जाऊँगा।

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