ख़ुद को औरों की तवज्जो का... ख़ुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो; आइना देख लो अहबाब से पूछा न करो; वह जिलाएंगे तुम्हें शर्त बस इतनी है कि तुम; सिर्फ जीते रहो जीने की तमन्ना न करो; जाने कब कोई हवा आ के गिरा दे इन को; पंछियो ! टूटती शाख़ों पे बसेरा न करो; आगही बंद नहीं चंद कुतुब-ख़ानों में; राह चलते हुए लोगों से भी याराना करो; चारागर छोड़ भी दो अपने मरज़ पर हम को; तुम को अच्छा जो न करना है तो अच्छा न करो; शेर अच्छे भी कहो सच भी कहो कम भी कहो; दर्द की दौलते-नायाब को रुसवा न करो।

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