खोलिए आँख तो... खोलिए आँख तो मंज़र है नया और बहुत; तू भी क्या कुछ है मगर तेरे सिवा और बहुत; जो खता की है जज़ा खूब ही पायी उसकी; जो अभी की ही नहीं उसकी सज़ा और बहुत; खूब दीवार दिखाई है ये मज़बूरी की; यही काफी है बहाने न बना और बहुत; सर सलामत है तो सज़दा भी कहीं कर लूँगा; ज़ुस्तज़ु चाहिए बन्दों को खुदा और बहुत।

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