ग़मों से यूँ वो फ़रार... ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था; फ़ज़ा में उड़ते परिंदे शुमार करता था; बयान करता था दरिया के पार के क़िस्से; ये और बात वो दरिया न पार करता था; बिछड़ के एक ही बस्ती में दोनों ज़िंदा हैं; मैं उस से इश्क़ तो वो मुझ से प्यार करता था; यूँ ही था शहर की शख़्सियतों को रंज उस से; कि वो ज़िदें भी बड़ी पुर-वक़ार करता था; कल अपनी जान को दिन में बचा नहीं पाया; वो आदमी के जो आहाट पे वार करता था; सदाक़तें थीं मेरी बंदगी में जब अज़हर ; हिफ़ाज़तें मेरी परवर-दिगार करता था।

Your Comment Comment Head Icon

Login