गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे; गुज़रूँ जो उस गली से तो ठंडी हवा लगे; मेहमान बन के आये किसी रोज़ अगर वो शख़्स; उस रोज़ बिन सजाये मेरा घर सजा लगे; मैं इस लिये मनाता नहीं वस्ल की ख़ुशी; मेरे रक़ीब की न मुझे बददुआ लगे; वो क़हत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों; जो मुस्कुरा के बात करे आश्ना लगे; तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उस की अदा क़तील ; मुझको सताये कोई तो उस को बुरा लगे।

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