घर की दहलीज़ से... घर की दहलीज़ से बाज़ार में मत आ जाना; तुम किसी चश्म-ए-ख़रीदार में मत आ जाना; ख़ाक उड़ाना इन्हीं गलियों में भला लगता है; चलते फिरते किसी दरबार में मत आ जाना; यूँ ही ख़ुशबू की तरह फैलते रहना हर सू; तुम किसी दाम-ए-तलब-गार में मत आ जाना; दूर साहिल पे खड़े रह के तमाशा करना; किसी उम्मीद के मझदार में मत आ जाना; अच्छे लगते हो के ख़ुद-सर नहीं ख़ुद्दार हो तुम; हाँ सिमट के बुत-ए-पिंदार में मत आ जाना; चाँद कहता हूँ तो मतलब न ग़लत लेना तुम; रात को रोज़न-ए-दीवार में मत आ जाना।

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