छेड़ने का तो मज़ा तब है कहो और सुनो; बात में तुम तो ख़फ़ा हो गये लो और सुनो; तुम कहोगे जिसे कुछ क्यूँ न कहेगा तुम को; छोड़ देवेगा भला देख तो लो और सुनो; यही इंसाफ़ है कुछ सोचो तो अपने दिल में; तुम तो सौ कह लो मेरी एक न सुनो और सुनो; आफ़रीं तुम पे यही चाहिए शाबाश तुम्हें; देख रोता मुझे यूँ हँसने लगो और सुनो; बात मेरी नहीं सुनते जो अकेले मिल कर; ऐसे ही ढँग से सुनाऊँ के सुनो और सुनो।

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