जागती रात अकेली... जागती रात अकेली-सी लगे; ज़िंदगी एक पहेली-सी लगे; रुप का रंग-महल ये दुनिया; एक दिन सूनी हवेली-सी लगे; हम-कलामी तेरी ख़ुश आए उसे; शायरी तेरी सहेली-सी लगे; मेरी इक उम्र की साथी ये ग़ज़ल; मुझ को हर रात नवेली-सी लगे; रातरानी सी वो महके ख़ामोशी; मुस्कुरादे तो चमेली-सी लगे; फ़न की महकी हुई मेंहदी से रची; ये बयाज़ उस की हथेली-सी लगे।

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