तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत... तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत से अगर नफ़रत है; तूने होठों के लरज़ने को तो रोका होता; बे-नियाज़ी से मगर कांपती आवाज़ के साथ; तूने घबरा के मेरा नाम न पूछा होता; तेरे बस में थी अगर मशाल-ए-जज़्बात की लौ; तेरे रुख्सार में गुलज़ार न भड़का होता; यूं तो मुझसे हुई सिर्फ़ आब-ओ-हवा की बातें; अपने टूटे हुए फ़िरक़ों को तो परखा होता; यूं ही बेवजह ठिठकने की ज़रूरत क्या थी; दम-ए-रुख्सत में अगर याद न आया होता।

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