तुम न आये एक दिन... तुम न आये एक दिन का वादा कर दो दिन तलक; हम पड़े तड़पा किये दो-दो पहर दो दिन तलक; दर्द-ए-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिन; रहता है उस नाज़नीं को दर्द-ए-सर दो दिन तलक; देखते हैं ख़्वाब में जिस दिन किस की चश्म-ए-मस्त; रहते हैं हम दो जहाँ से बेख़बर दो दिन तलक; गर यक़ीं हो ये हमें आयेगा तू दो दिन के बाद; तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक; क्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइये; घर से जो निकले न अपने तुम ज़फ़र दो दिन तलक।

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