तुम्हारी राह में... तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते; इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते; मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है; ये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आते; जिन्हें सलीका है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का; उन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आते; ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना; बुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आते; बिसात-ए-इश्क पे बढ़ना किसे नहीं आता; यह और बात कि बचने के घर नहीं आते; वसीम जहन बनाते हैं तो वही अख़बार; जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते।

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