तेरे ही क़दमों में तेरे ही क़दमों में मरना भी अपना जीना भी; कि तेरा प्यार है दरिया भी और सफ़ीना भी; मेरी नज़र में सभी आदमी बराबर हैं; मेरे लिए जो है काशी वही मदीना भी; तेरी निगाह को इसकी ख़बर नहीं शायद; कि टूट जाता है दिल-सा कोई नगीना भी; बस एक दर्द की मंज़िल है और एक मैं हूँ; कहूँ कि तूर ! भला क्या है मेरा जीना भी।

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