दिल को अब यूँ... दिल को अब यूँ तेरी हर एक अदा लगती है; जिस तरह नशे की हालत में हवा लगती है; रतजगे खवाब परेशाँ से कहीं बेहतर हैं; लरज़ उठता हूँ अगर आँख ज़रा लगती है; ऐ रगे-जाँ के मकीं तू भी कभी गौर से सुन; दिल की धडकन तेरे कदमों की सदा लगती है; गो दुखी दिल को हमने बचाया फिर भी; जिस जगह जखम हो वाँ चोट लगती है; शाखे-उममीद पे खिलते हैं तलब के गुनचे; या किसी शोख के हाथों में हिना लगती है; तेरा कहना कि हमें रौनके महफिल में फराज़ ; गो तसलली है मगर बात खुदा लगती है।

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