देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना; शेवा-ए-इश्क़ नहीं हुस्न को रुसवा करना; एक नज़र ही तेरी काफ़ी थी कि आई राहत-ए-जान; कुछ भी दुश्वार न था मुझ को शकेबा करना; उन को यहाँ वादे पे आ लेने दे ऐ अब्र-ए-बहार; जिस तरह चाहना फिर बाद में बरसा करना; शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रख ले; दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना; कुछ समझ में नहीं आता कि ये क्या है हसरत ; उन से मिलकर भी न इज़हार-ए-तमन्ना करना।

Your Comment Comment Head Icon

Login