दोस्त बनकर भी नहीं... दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला; वो ही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला; क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उससे; वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला; क्या ख़बर थी जो मेरी जाँ में घुला रहता है; है वही मुझको सर-ए-दार भी लाने वाला; मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते; है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला; तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो फ़राज़ ; दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला।

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