पुकारती है ख़ामोशी... पुकारती है ख़ामोशी मेरी फुगाँ की तरह; निग़ाहें कहती हैं सब राज़-ए-दिल ज़ुबाँ की तरह; जला के दाग़-ए-मोहब्बत ने दिल को ख़ाक किया; बहार आई मेरे बाग़ में खिज़ाँ की तरह; तलाश-ए-यार में छोड़ी न सरज़मीं कोई; हमारे पाँवों में चक्कर है आसमाँ की तरह; छुड़ा दे कैद से ऐ कैद हम असीरों को; लगा दे आग चमन में भी आशियाँ की तरह; हम अपने ज़ोफ़ के सदके बिठा दिया ऐसा; हिले ना दर से तेरे संग-ए-आसताँ की तरह।

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