बिछड़ा है जो एक बार तो... बिछड़ा है जो एक बार तो मिलते नहीं देखा; इस ज़ख़्म को हमने कभी सिलते नहीं देखा; इस बार जिसे चाट गई धूप की ख़्वाहिश; फिर शाख़ पे उस फूल को खिलते नहीं देखा; यक-लख़्त गिरा है तो जड़ें तक निकल आईं; जिस पेड़ को आँधी में भी हिलते नहीं देखा; काँटों में घिरे फूल को चूम आयेगी तितली; तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा; किस तरह मेरी रूह हरी कर गया आख़िर; वो ज़हर जिसे जिस्म में खिलते नहीं देखा।

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