मय रहे मीना रहे ग़र्दिश में... मय रहे मीना रहे ग़र्दिश में पैमाना रहे; मेरे साक़ी तू रहे आबाद मयखाना रहे; हश्र भी तो हो चुका रुख़ से नहीं हटती नक़ाब; हद भी आख़िर कुछ है कब तक कोई दीवाना रहे; रात को जा बैठते हैं रोज़ हम मजनूं के पास; पहले अनबन रह चुकी है अब तो याराना रहे; ज़िन्दगी का लुत्फ़ हो उड़ती रहे हरदम रियाज़; हम हों शीशे की परी हो घर परीखाना रहे।

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