माना कि आदमी को माना कि आदमी को हँसाता है आदमी; इतना नहीं कि जितना रुलाता है आदमी; माना गले से सब को लगाता है आदमी; दिल में किसी-किसी को बिठाता है आदमी; सुख में लिहाफ़ ओढ़ के सोता है चैन से; दुख में हमेशा शोर मचाता है आदमी; हर आदमी की ज़ात अजीब-ओ-गरीब है; कब आदमी को दोस्तो! भाता है आदमी; दुनिया से ख़ाली हाथ कभी लौटता नहीं; कुछ राज़ अपने साथ ले जाता है आदमी।

Your Comment Comment Head Icon

Login