मुँह तका ही करे... मुँह तका ही करे है जिस-तिस का; हैरती है ये आईना किस का; शाम से कुछ बुझा सा रहता है; दिल हुआ है चराग़ मुफ़लिस का; फ़ैज़ अय अब्र चश्म-ए-तर से उठा; आज दामन वसीअ है इसका; ताब किसको जो हाल-ए-मीर सुने; हाल ही और कुछ है मजलिस का।

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