मैं इस उम्मीद पे डूबा... मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा; अब इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा; ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा; ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा; मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा; कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा; कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए; जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा; मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे; सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा; हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता वसीम ; मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा।

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