ये चाँदनी भी जिन को... ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है; दुनिया उन्हीं फूलों को पैरों से मसलती है; शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा है; जिस डाल पर बैठे हो वो टूट भी सकती है; लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे; यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है; आ जाता है ख़ुद खींच कर दिल सीने से पटरी पर; जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है; आँसू कभी पलकों पर तो देर तक नहीं रुकते; उड़ जाते हैं वे पंछी जब शाख़ लचकती है; ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये; बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है।

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