रची है रतजगो की... रची है रतजगो की चाँदनी जिन की जबीनों में; क़तील एक उम्र गुज़री है हमारी उन हसीनों में; वो जिनके आँचलों से ज़िन्दगी तख़लीक होती है; ढड़ाकता है हमारा दिल अभी तक उन हसीनों में; ज़माना पारसाई की हदों से हम को ले आया; मगर हम आज तक रुस्वा हैं अपने हमनशीनों में; तलाश उन को हमारी तो नहीं पूछ ज़रा उन से; वो क़ातिल जो लिये फिरते हैं ख़न्जर आस्तीनों में।

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