रुस्वाइयाँ ग़ज़ब की हुईं... रुस्वाइयाँ ग़ज़ब की हुईं तेरी राह में; हद है कि ख़ुद ज़लील हूँ अपनी निगाह में; मैं भी कहूँगा देंगे जो आज़ा गवाहियाँ; या रब यह सब शरीक थे मेरे गुनाह में; थी जुज़वे-नातवाँ किसी ज़र्रे में मिल गई; हस्ती का क्या वजूद तेरी जलवागाह में; ऐ शाद और कुछ न मिला जब बराये नज़्र; शर्मिंदगी को लेके चले बारगाह में।

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