लगता नहीं है जी मेरा... लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में; किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में; कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें; इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में; उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन; दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में; काँटों को मत निकाल चमन से ओ बागबाँ; ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में; कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिये; दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में। अनुवाद: आलम-ए-नापायेदार = अस्थायी दुनिया सय्याद = शिकारी

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