लौट के उसी दो राहे पर.... लौट के उसी दो राहे पर बार-बार पहुँचा; मैं कहीं भी पहुंचा बस बेकार पहुंचा; सारी रात गुज़ार दी चंद लफ़्ज़ों के साथ; मेरे सवाल से पहले उनका इनकार पहुँचा; मैं कहीं भी... रूह की गहराईयों में राह तकती आंखें; जहाँ तू नहीं पहुँचा वहाँ इंतज़ार पहुँचा; मैं कहीं भी... होश न आया फिर होश जाने के बाद; मैं गया किधर भी मगर कूचा ए यार पहुँचा; मैं कहीं भी... डूब के जाना है ये तो मालूम था वीर ; नज़र नहीं आता जहाँ कोई मैं उस पार पहुँचा; मैं कहीं भी...

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