वो जो वह एक अक्स है सहमा हुआ डरा हुआ; देखा है उसने गौर से सूरज को डूबता हुआ; तकता हु कितनी देर से दरिया को मैं करीब से; रिश्ता हरेक ख़त्म क्या पानी से प्यास का हुआ; होठो से आगे का सफर बेहतर है मुल्तवी करे; वो भी है कुछ निढाल सा मैं भी हु कुछ थका हुआ; कल एक बरहना शाख से पागल हवा लिपट गयी; देखा था खुद ये सानिहा लगता है जो सुना हुआ; पैरो के निचे से मेरे कब की जमीं निकल गयी; जीना है और या नहीं अब तक न फैसला हुआ।

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