वफ़ा के शीश महल... वफ़ा के शीश महल में सजा लिया मैंने; वो एक दिल जिसे पत्थर बना लिया मैंने; यह सोच कर कि ना हो ताक में ख़ुशी कोई; ग़मों की ओट में खुद को छुपा लिया मैंने; कभी ना ख़त्म किया मैंने रौशनी का मुहाज़; अगर चिराग बुझा दिल जला लिया मैंने; कमाल यह है कि जो दुश्मन पर चलाना था; वो तीर अपने कलेजे पे खा लिया मैंने; क़ातिल जिसकी अदावत में एक प्यार भी था; उस आदमी को गले से लगा लिया मैंने।

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