सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर... सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं; हाय क्या अच्छी कही ज़ालिम हूँ मैं जाहिल हूँ मैं; है मेरी ज़िल्लत ही कुछ मेरी शराफ़त की दलील; जिस की ग़फ़लत को मलक रोते हैं वो ग़ाफ़िल हूँ मैं; बज़्म-ए-हस्ती अपनी आराइश पे तू नाज़ाँ न हो; तू तो इक तस्वीर है महफ़िल की और महफ़िल हूँ मैं; ढूँढता फिरता हूँ ऐ इक़बाल अपने आप को; आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं।

Your Comment Comment Head Icon

Login